आहत स्त्री
Sneha Singh
Narrator Pallav
Publisher: BuCAudio
Summary
।। आहत स्त्री ।। स्त्री का मन होता हैं फूल सा कोमल उसके भीतर के अहसास भी होते छुईमुई से और नाजुक । क्यूं और कब,कैसे और कहां हो जाती हैं फिर वो आहत भीतर ही भीतर ।। कब और कैसे हो जाती हैं चोटिल उसके भाव ।। संस्कारों की खान बन चलती हैं मर्यादा का पालन करती हैं हर रीति,हर रस्म को निभाती हैं मरते दम तक । फिर भी,मुंह से उफ्फ तक न करती हैं । स्त्री,आखिर क्यूं इतने विशाल हृदय के साथ जीती हैं ।। मैंने, पढ़ी हैं तमाम जुल्मों की कहानियां जो इतिहास में घटित हुई या आज भी हो रही हैं । स्त्री, क्यों,समझी जाती हैं सजावट की कोई वस्तु । मन बहलाने का साधन । क्या,उसका भीतर से नही होता खुलकर जीने, हंसने का मन ।। पुरातन काल हो या आज के हाल स्त्री की दुर्दशा वही हैं । उसके जिस्म से खिलवाड़ करना समझा जाता हैं मनोरंजन का एक घटिया सा साधन क्या,हम सब भूल गए निर्भया कांड । या उस,जैसे जुड़े तमाम हालात ।। ऐसी ही एक कहानी मुझे आज मिली जिसे मैं,आप सबके साथ साझा करना चाहती हूं । इसको, पढ़ने,समझने और महसूस करने के बाद दिल भर गया आक्रोश से । जिस्म और मस्तिष्क हो गया जल आग बबूला ।। आप भी,नजर डालिए इस पर और अपने अपने सोए ईमान को जगाइए । किसी स्त्री का बलात्कार करने के उपरांत आरा मशीन से उसे दो भागों में चीर देने की किसी घटना के बारे में आपने सुना है ? और दो भाग भी ऐसे कि उसके गुप्तांग से आरी चलाते हुए दोनों वक्ष स्थलों को दो भाग में करते हुए माथे को दो भाग में चीर देना . सुना है आपने ? नहीं ???
Duration: 21 minutes (00:20:50) Publishing date: 2025-05-03; Unabridged; Copyright Year: — Copyright Statment: —

