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Kulhadi - Malgudi Days by R K Narayan - कुल्हाड़ी - मालगुडी डेज़ आर के नारायण - cover
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Kulhadi - Malgudi Days by R K Narayan - कुल्हाड़ी - मालगुडी डेज़ आर के नारायण

R. R.K.Narayan

Narrator R. R.K.Narayan

Publisher: LOTUS PUBLICATION

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Summary

Kulhadi - Malgudi Days by R. K. Narayan – कुल्हाड़ी - मालगुडी डेज़ आर. के. नारायण 
“Kulhadi” is a touching Hindi audiobook story from R. K. Narayan’s Malgudi Days, where a poor gardener named Velan witnesses fate, prophecy, and time shape his life around a grand bungalow. A tale of struggle, destiny, and silent resilience — perfect for listeners who love reflective and emotional stories with deeper meaning. 
"एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी कि वेलन एक तीन-मंज़िला घर में रहेगा। वेलन अपने गाँव के सबसे गरीब परिवार से था। 18 साल की उम्र में सबके सामने अपने पिता से थप्पड़ खाने के बाद उसने गाँव छोड़ दिया। कुछ दिनों तक भीख मांगने के बाद, एक बूढ़े व्यक्ति ने उसे माली की नौकरी दी। उस व्यक्ति ने अपनी बड़ी सी ज़मीन पर एक तीन-मंज़िला बंगला बनवाया था। लेकिन वेलन, बंगले के पास की झोपड़ी में रहता था। बंगले के निर्माण से प्रभावित, वह एक मार्गोसा के तने को पकड़ता है और उसे जल्दी-जल्दी बंगले के समान उगने के लिए कहता है। मार्गोसा अच्छे से विकसित होता है। उसके मालिक के पोते पेड़ के नीचे खेलते हैं और सैकड़ों पक्षी उस पर रहते हैं। एक दिन वेलन के मालिक की मृत्यु हो जाती है। फिर कुछ वर्षों तक घर में परिवार के अन्य सदस्य रहते हैं, और एक दिन वे भी घर की चाबियां वेलन को देकर चले जाते हैं। कुछ साल बाद, एक आदमी आकर कहता है कि उसने वह ज़मीन खरीद ली है और अब वह वहां पर तोड़-फोड़ शुरू करने वाला है। लेखक आर. के. नारायण 
“मालगुडी डेज” भारत के प्रख्यात लेखक आर.के.नारायण द्वारा रचित एक काल्पनिक शहर की कहानी है और इसी तर्ज पर कन्नड़ अभिनेता और निर्देशक शंकर नाग ने इस पर 1986 में एक टीवी सीरियल का निर्देशन भी किया, जिसे 'मालगुडी डेज़' कहते हैं। मालगुडी, दक्षिण भारत के मद्रास से कुछ घंटों की दूरी पर स्थित एक काल्पनिक गाँव है जो की आर.के.नारायण की ही कल्पना थी। यह शहर मेम्पी जंगल के पास सरयू नदी के किनारे बसा हुआ है। इस जगह की वास्तविकता के बारे में खुद आर.के.नारायण भी अनजान थे। कई लोग इसे कोइम्बतुर में मानते हैं क्योंकि वहां पर भी ऐसी ही इमारतें और घर थे।
Duration: 14 minutes (00:13:51)
Publishing date: 2025-04-18; Unabridged; Copyright Year: — Copyright Statment: —