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कुछ रंग इज़हार इन्कार इन्तज़ार के! - cover

कुछ रंग इज़हार इन्कार इन्तज़ार के!

Surjeet Kumar

Maison d'édition: Surjeet Kumar

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Synopsis

ज़िंदगी अनेक खूबसूरत रंगों का संगम है, जिसका सब से सुंदर रंग है, प्यार! प्यार कभी भी किसी से भी हो सकता है, चाहे वो सपनो में आये साथी से हो, विवाह के बाद जीवनसाथी से हो या फिर पहली नज़र वाला प्यार हो। जब तक इसमें रूठना, मनाना, इज़हार, इंकार, इंतज़ार आदि की बातें ना हो, कुछ ना कुछ अधूरा सा लगता है । इन्ही सब एह्सासों को अलग-अलग शीर्षकों और कही-कही एक ही शीर्षक में इन सब एहसासो को एक ही कविता में बांधने की कोशिश करती है, ये किताब ।
Disponible depuis: 15/06/2022.
Longueur d'impression: 55 pages.

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    45 Rupye Mahine - Malgudi Days by R. K. Narayan - 45 रूपए महीने - मालगुडी डेज़ आर. के. नारायण 
    "कभी-कभी अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने में आप उनकी खुशियों पर ध्यान देना भूल जाते हैं। कुछ ऐसा ही शांता के पिताजी वेंकटराव के साथ भी हो रहा था। शांता पिछले कई दिनों से अपने पिताजी के दिए हुए समय पर उनके साथ बाहर घूमने जाने के लिए तैयार हो जाती हैं लेकिन, वेंकटराव को हर बार उसका मैनेजर उसे ज़्यादा काम देकर रोक लेता है, जिस कारण वे शांता को बाहर नहीं ले जा पाता था। शांता बहुत दुखी हो जाती है। ऐसे में अपनी बच्ची को दिया वादा लगातार पूरा ना कर पाने के कारण वेंकटराव मैनेजर से बात करने जाता है।लेखक आर. के. नारायण 
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    Lauli Road - Malgudi Days by R. K. Narayan – लॉली रोड - मालगुडी डेज़ आर. के. नारायण  
    “Lauli Road” is a humorous and satirical Hindi audiobook from R. K. Narayan’s Malgudi Days, featuring a talkative freelance journalist who ends up with a British statue stuck in his doorway. Set in post-independence India, the story explores themes of patriotism, absurdity, and unintended consequences through sharp wit and brilliant storytelling. 
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    धनुषकोड़ी की अंतिम ट्रेन एक रोमांचक और हृदयस्पर्शी कहानी है, जो भारत की एक भयावह प्राकृतिक त्रासदी की पृष्ठभूमि पर आधारित है। वर्ष 1964 की एक तूफ़ानी रात में, यात्रियों से भरी एक ट्रेन धनुषकोड़ी द्वीप नगर की ओर रवाना होती है। हवा में अनहोनी की आहट है — समुद्र में उठती लहरें, आसमान में गड़गड़ाहट, और लोगों के मन में अजीब बेचैनी। जैसे-जैसे ट्रेन आगे बढ़ती है, एक भयानक चक्रवात आकार लेता है, और अचानक एक प्रलयंकारी ज्वारीय लहर सब कुछ अपने साथ बहा ले जाती है। जीवन और मृत्यु के बीच की अंतिम जद्दोजहद में, यात्रियों की हिम्मत, डर और नियति की करुण कहानी उभर कर सामने आती है। 
    यह ऑडियोबुक प्रकृति के प्रकोप, मानव साहस और भाग्य के निर्दयी मोड़ की एक सशक्त दास्तान है — धनुषकोड़ी की अंतिम ट्रेन सुनने के बाद उसकी गूंज लंबे समय तक आपके मन में बनी रहेगी। 
    सूची: 
    प्रस्तावना – भूतिया स्टेशन की रहस्यमयी रात 
    अध्याय 1 – भुलाए हुए नगर के किनारे 
    अध्याय 2 – अजनबी की डायरी 
    अध्याय 3 – अधूरी यात्रा 
    अध्याय 4 – रामसेतु की फुसफुसाहट 
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    अध्याय 8 – भूतिया ट्रेन की वापसी 
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    अध्याय 10 – उपसंहार: अंतिम प्रस्थान 
    Title: धनुषकोड़ी की अंतिम ट्रेन ( Last Train to Dhanushkodi ) 
    Genre: Suspense Thriller (based on a real incident) 
    Language: Hindi 
    File Type: Mp3 
    Length: 59 Min 
    Audiobook Narrated and Published by: Sweet Audible (2025) 
    Download our Audiobooks from: https://audio.sweetaudible.com/
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  • Kitni Purnta - Malgudi Days by R K Narayan - कितनी पूर्णता - मालगुडी डेज़ आर के नारायण - cover

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    Kitni Purnta - Malgudi Days by R. K. Narayan - कितनी पूर्णता - मालगुडी डेज़ आर. के. नारायण 
    "यह कहानी एक ऐसे मूर्तिकार की है जो पाँच साल की महनत के बाद एक मूर्ति को पूरा कर पाता है। यह भगवान नटराज की मूर्ति है, जिन्हे हर कोई एक परिपूर्ण देवता मानता है। इसलिए उनकी मूर्ति भी ऐसी होनी चाहिए, जिसे देखते ही लोग उनकी आभा को महसूस कर सके। पुजारी मूर्तिकार से मूर्ति के एक अंगूठे को तोड़ने के लिए कहते हैं ताकि वह देखने पर सुरक्षित रहे, लेकिन मूर्तिकार ऐसा नहीं करता। बदले में पुजारी मंदिर में पूजा करने से मना कर देते हैं। मूर्तिकार अपने घर को ही एक मंदिर में बदल देता है ताकि वह वहां पर पूजा कर सके। यह देखकर भगवान खुद हर तरह की प्राकृतिक आपदा उत्पन्न कर इस क्षेत्र का नाश करते हैं। ऐसा होने पर क्षेत्र के कई निवासी मूर्तिकार से विनती करते हैं की वह सब की भलाई के लिए मूर्ति की पूर्णता को कुर्बान करे, पर वह ऐसा नहीं करता। वह खुद को भगवान् को समर्पित करने के लिए झील में डूबने के लिए निकलता ही है कि उसके घर पर एक पेड़ गिर जाता है। वह वापस आकर देखता है, तो मूर्ति के एक अंगूठे के अलावा और कुछ भी टूटता नहीं है। अब जाकर इस मूर्ति की स्थापना मंदिर में होती है और मूर्तिकार अपना व्यापार बंद कर देता है।“ लेखक आर. के. नारायण 
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