Karwan E Hayat
विजय कुमार "नाकाम"
Erzähler Mridweeka Tripathi
Verlag: BuCAudio
Beschreibung
विजय कुमार 'नाकाम का कविता संग्रह पढ़ते हुए यूं महसूस होता है। जैसे हम अपने ही जीवन के किसी हिस्से की कथा पढ़ रहे हैं । कविता में दर्द की प्रमुखता है और प्रभावित भी करता है पढ़ते हुए लगता है कवि की जिंदगी दर्द की गलियों से ज्यादा गुजरी है परिस्थिति वश दबा ढका दर्द उभर कर कविता में उतरा होगा। कहीं पर मुस्कराहट भी है, व्यंग भी है। सामाजिक विसंगति यों पर कटाक्ष भी है। कई कविता में कवि ने कई मशहूर हस्तियों, शायरों और बादशाहों को याद करते हुए उनके साथ हुए हादसों का वर्णन किया है। जिसे पढ़ते हुए विद्वान पाठक को वर्णित व्यक्ति की याद आ जाती है। संग्रह में आध्यात्मिक रस से ओतप्रोत कविता 'उलझन' भी हैं शुरुआत में पता ही नहीं चलता, मगर अंत में लगता हैं कि कवि अपने प्रयास में सफल हुआ है। कई अत्यन्त गूढ़ शब्द प्रयोग किए गए हैं जो योग एवं अध्यात्म से जुड़े लोग ही समझ पाएंगे। बुढ़ापे में अनगिनत समस्याओं का विशद और दर्दनाक वर्णन हुआ है। एक सामाजिक बुराई की ओर इंगित करते हुए युवा पीढ़ी को नसीहत देते हुए बड़ी नफासत से अपनी बात कही गई है। डरे डरे से कदम कोरोना काल पर हर एक पहलू से अवलोकन करते हुए कवि बड़ी गहनता से हर समस्या, पीड़ा और यातना का सटीक वर्णन करता है। किताब का दर्द में समसामयिक मुक्त कविता का चलन हुआ है विषय पर गहनता से अध्ययन कर के हर पहलू को बताया गया है जब से छंद तब से स्वयं प्रकाशन करने की प्रतियोगिता-सी चल पड़ी है। हर कोई लेखक बन गया है। लिखा खूब जा रहा है प्रकाशित भी हो रहा हैं। प्रकाशन एक सुव्यवस्थित व्यवसाय हो गया है लेखक भी यही व्यवस्था का भुक्तभोगी है। प्रकाशित पुस्तकों का अंजाम क्या होता है? या तो मुफ्त में वितरित होती है या उधई या कबाड़ी का पेट भरता है। कई कविताएं लेखक ने अपने परिवार के सदस्यों के ऊपर लिखी है। जिसकी भाषा से यही पर लक्षित होता है कि उर्दू के साथ हिन्दी पर भी कवि का समान अधिकार है। शेर और मुक्तक भी अच्छे लिखे गए हैं। उर्दू के साथ-साथ हिन्दी का भी व्यापक उपयोग हुआ हैं। हिंदी भाषियों के लिए कवि अगर कठिन उर्दू शब्दों का अर्थ भी रचना के अंत में दिया गया होता तो कविता संग्रह की उप देयता और बढ़ जाती।
Dauer: etwa eine Stunde (00:51:03) Veröffentlichungsdatum: 05.03.2025; Unabridged; Copyright Year: — Copyright Statment: —

