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मेरे घर से गोवर्धन - cover

मेरे घर से गोवर्धन

अदिति शुक्ला

Editorial: Publishdrive

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Sinopsis

किताब के भीतर से
 
मथुरा जंक्शन ( MTJ) स्टेशन, हम उतर गए, हम प्लेटफार्म नम्बर एक पर उतरे थे। मैंने उतरते ही भूरा से पूछा,
 
"दीपक भाई कहाँ हैं?"
 
"वह हमारे कुछ देर बाद ही ट्रेन में बैठ गए थे, सुबह तक पहुँच जायेंगे।"
 
"तब तक हम क्या करें?"
 
"यहीं बैठकर इंतजार करें और क्या करेंगे।"
 
"ठंड है यार।"
 
"दीपक भाई सही कह रहे थे, यहाँ कितना कोहरा है।"
 
"हाँ, अपने इधर इतनी ठंड नहीं थी।" हम चलते-चलते एक खाली स्टील बेंच के पास पहुँचे और उस पर बैठ गए,
 
"यह तो बहुत ठंडी है, (मोटे) जींस में से भी फील हो रही है।" मैंने आगे कहा।
 
"यह लोग सो रहे हैं, इनको उठा दे, वो गरम होगी।" भूरा ने मजाक किया।
 
''सोने दो, हमारी बेंच भी थोड़ी देर में गर्म हो जाएगी।" हमने अपने-अपने बैग उतारे और हम दोनों के बीच में रख लिए, हम उनसे चिपककर बैठ गए। भूरा ने मोबाइल निकाला और उसमें दीपक भाई की ट्रेन कहाँ है, देखने लगा,
 
"कहाँ पहुंची?" मैंने देखकर पूछा।
 
"सुबह तक आ जाएगी।" उसने कहा।
 
हम बैठे रहे, फिर मैंने चारों तरफ नजरें घुमाई, मैंने पाया कि यह स्टेशन बहुत बड़ा है, विदिशा स्टेशन इसके आगे बहुत छोटा था। विदिशा स्टेशन पर तीन प्लेटफार्म थे और इस पर छः प्लेटफार्म हैं। इस पर बहुत सारी दुकानें हैं, बहुत लम्बी चौड़ी बिल्डिंग हैं। यह इतना बड़ा क्यों हैं? ओ हाँ, यहाँ बहुत लोग आते हैं, यह धर्मायात्रियों के लिए बनाया गया है। यहाँ सच में बहुत यात्री आतें हैं। भारत धर्म प्रधान देश है और मथुरा आध्यात्म का हृदय है।
 
नजरे घुमाते समय मैंने बहुत लोगों को देखा, चूँकि सुबह होने वाली थी, सब यात्रा के लिए तैयार हो रहे थे। उन्हें देखकर आनंद आ रहा था, मैं सोच रहा था कि जब मेरे गाँव से लोग आते होंगे तो वह भी इसी तरह घूमते होंगे। वह भी ऐसे ही तैयार होते होंगे। पास में ही बड़े-बड़े ग्रुप थे, कुछ समूहों में बूढ़े प्रौढ़ लोग भी थे। कुछ में बच्चे थे, कुछ गाँव वाले थे, कुछ शहरों वाले थे। गाँव से जो यात्री थे, वह सहज तरह से अपना काम कर रहे थे, वह अपने गाँव को ही अपने साथ ले आये थे, वह जिस तरह अपने गाँव रहते हैं, वहाँ भी रह रहे थे, उन सभी में गहरा संबंध नजर आ रहा था।
 
इस यात्रावृत्त (Travelogue) को अभी पढ़े।
Disponible desde: 31/10/2024.
Longitud de impresión: 218 páginas.

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    लौह पुरुष सरदार वल्लभाई पटेल सिर्फ आदर्श व्यक्ति ही नहीं, बल्कि साहसी और प्रखर इंसान थे। उन्होंने पूरे देश को एक करने में भरपूर कोशिश की । उनका नाम तो सरदार वल्लभाई पटेल था पर उनके महान कार्यो के कारण उन्हें लौह पुरुष की उपाधि दी गई। 
    1 . ट्रेलर 
    लौह पुरुष सरदार वल्लभाई पटेल सिर्फ आदर्श व्यक्ति ही नहीं, बल्कि साहसी और प्रखर इंसान थे। उन्होंने पूरे देश को एक करने में भरपूर कोशिश की । उनका नाम तो सरदार वल्लभाई पटेल था पर उनके महान कार्यो के कारण उन्हें लौह पुरुष की उपाधि दी गई। 
    2 . सरदार का जन्म 
    सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 गुजरात के एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम झवेरभाई और माता का नाम लाडबा देवी था। किसान परिवार में जन्म लेने की वजह से पढ़ने लिखने में उन्हें थोड़ी तकलीफ हुई। 
    3 . सरदार और पढ़ाई 
    सरदार वल्लभ भाई पटेल एक किसान परिवार से थे। इस वजह से उनके परिवार की आर्थिक हालत इतनी अच्छी नहीं थी। पढ़ाई के लिए भला खर्चा करने की वह सोच भी नहीं सकते थे।  
    4 . सरदार और उनका त्याग 
    सरदार वल्लभाई पटेल को विलायत जाकर अपनी बैरिस्टर की पढाई करनी थी। उन्होंने पाई पाई जोड़कर विलायत जाने के पैसे भी जमा कर लिए। 
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    7 . सरदार का संत्याग्रह 
    8 . सरदार का आंदोलन 
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